Thursday, December 12, 2024
जब मैं कविता लिखता हूँ
अंतिम कुछ भी नहीं है
अरे जनाब अब चाय पीजिए
खैर मैं कहीं जा भी नहीं सकता
बदनाम सड़क का किस्सा
वो घर याद आता है
गांव
वो बच्चे
बरगद
Friday, February 23, 2024
उम्मीद ही तो है
Friday, February 2, 2024
घड़ी
Wednesday, January 31, 2024
अब वक्त कहां?
कितना अकेला हूँ मैं
इसका हूँ के उसका हूँ
ना जाने मैं किस-किस का हूँ
किसी का प्यारा तो किसी का खास हूँ
कहीं मस्त तो कहीं अलबेला हूँ मैं
दुनिया के इस जंजाल में कितना अकेला हूँ मैं
कहने को कई दोस्तो का दोस्त हूँ
और कुछो का तो अनजाना रिश्तेदार हूँ
किसी की आश तो किसी की उम्मीद हूँ
कहीं खुशी तो कहीं बड़ा झमेला हूँ मैं
दुनिया के इस जंजाल में कितना अकेला हूँ मैं
कहीं तारा तो कहीं सूरज हूँ
किसी की गद्दी तो किसी का सरताज हूँ
इस करोड़ों की आबादी में किसी का पुखराज हूँ
कहीं एकदम आसान तो कहीं बड़ा हठेला हूँ मैं
दुनिया के इस जंजाल में कितना अकेला हूँ मैं
ये जंग अकेले जीतनी है मुझे मैं जानता हूँ
ये सारा सफर अकेले तय करना है मुझे, मैं जानता हूँ
इस भीड़ में पुष्पों सा खिलना है मुझे, मैं जानता हूँ
कहीं बेशर्म तो कहीं बड़ा शर्मीला हूँ मैं
दुनिया के इस जंजाल में कितना अकेला हूँ मैं !
अहम का वहम !
पर्वत और चिड़िया का संवाद
बाकी है
Saturday, January 20, 2024
मैं चाहता हूँ, तुमसा बनना मेरी माँ।
कैसे दिन से पहले दिन करती हो माँ
और सूरज से भी पहले तुम उठती हो माँ
फिर बिना इत्र के घर को महका देती हो माँ
पूरा घर कैसे अपने इन्हीं हाथों से उठा लेती हो माँ
मुझे नहीं बनना कुछ बस मैं चाहता हूँ, तुमसा बनना मेरी माँ
कई लोगों से मिला और कइयों से बिछडा मैं माँ
कहीं हारा कहीं कुछ छूटा और फिर खाली हाथ लौटा मैं माँ
खाली हाथ घर आके तुम्हें देख लगा जैसे मैं ही खुदा हूँ माँ
आपका सिर्फ चेहरा ही मानो मेरी जन्नत हो माँ
मुझे नहीं बनना कुछ बस मैं चाहता हूँ, तुमसा बनना मेरी माँ
कई दफा तुमसे कैसे लिपट कर जोर से रोया मैं माँ
यहां पर लेकिन मैं अकेला नहीं हूँ मेरे साथ एक शब्द है माँ
कोशिश में हूँ और एक दिन घर लौटूंगा मैं माँ
और तुम्हारी तरह ही तुमसे लिपटकर तुम्हें ठीक कर दूंगा माँ
मुझे नहीं बनना कुछ बस मैं चाहता हूँ, तुमसा बनना मेरी माँ
अभी भी मेरा मन हर बीमारी में डॉक्टर से पहले तुम्हें याद करता है माँ
माँ सुनो ना मैं थोड़ा सा यहां बीमार हूँ कई ऐसी बीमारियों का
जिनका तुम्हारे सिवा कोई डॉक्टर नहीं और ना ही कोई इलाज माँ
मेरे बिना ही कुछ किये मुझे राजा बताती हो माँ
मुझे नहीं बनना कुछ बस मैं चाहता हूँ, तुमसा बनना मेरी माँ!
पापा की एक आवाज़
शहर आज परेशान है
बस अब बहोत हुआ
वो फूल नहीं कांटे थे
अब हम हम हो जाते है।
बस एक कदम और
Friday, January 19, 2024
रातें जागी है तो कहानियां तो बनेंगी
क्या-क्या बताऊं
मेरी समता बताऊँ या मेरी विषमता बताऊँ
मेरी सफलता बताऊँ या मेरी विफलता बताऊँ
मेरे टूटे हुए सपने बताऊँ या पूरे हुए ख्वाब बताऊँ
बातों के पिटारों से सोचता हूं तुम्हें क्या-क्या बताऊँ
मेरी नादानियां बताऊँ या मेरी चालाकियां बताऊँ
मेरी समझदारियां बताऊँ या मेरी बेवकूफियां बताऊँ
मेरे कुछ दोस्त बताऊँ या मेरे कुछ दुश्मन बताऊँ
बातों के पिटारों से सोचता हूं तुम्हें क्या-क्या बताऊँ
मेरे उजले दिन बताऊँ या मेरी काली रातें बताऊँ
मेरा कुछ डर बताऊँ या मेरी कुछ ताकत बताऊँ
मेरा हंसना बताऊँ या मेरा रोना बताऊँ
बातों के पिटारों से सोचता हूं तुम्हें क्या-क्या बताऊँ
मेरी लिखावट बताऊँ या जो लिख नहीं सका वो बताऊँ
मेरी पढ़ी-लिखी इलम बताऊँ या जो पढूंगा वो बताऊँ
मेरे कुछ अच्छे रंग बताऊँ या मेरे कुछ बुरे ढंग बताऊँ
बातों के पिटारों से सोचता हूं तुम्हें क्या-क्या बताऊँ ।
Thursday, January 18, 2024
मेरे गांव की वो सड़क
सवेरे सवेरे उठ कर दिखती थी जो सड़क
जोड़ती थी मेरे घर को बड़ी सड़क से वो सड़क
कहीं ठीक तो कहीं जरा सी टूटी-फूटी वो सड़क
ज्यादा चौड़ी नहीं ना ज्यादा छोटी है वो सड़क
आखिर कैसी भी है याद आती है मेरे गांव की वो सड़क
कुछ दूर चला जाता था तब भी घर दिखाती वो सड़क
मैं कहीं ठहर जाता तो धूप से मुझे बचाती वो सड़क
पेड़ों से घिरी खेतों किनारे, घांसो से भरी वो सड़क
ज्यादा चौड़ी नहीं ना ज्यादा छोटी है वो सड़क
आखिर कैसी भी है याद आती है मेरे गांव की वो सड़क
मेरे घर अक्सर खुशियां लाती है वो सड़क
मासी बुआ नाना नानी सबको घर लाती है वो सड़क
दिवाली की मिठाई होली के रंग, राखी पे राखी लाती है वो सड़क
ज्यादा चौड़ी नहीं ना ज्यादा छोटी है वो सड़क
आखिर कैसी भी है याद आती है मेरे गांव की वो सड़क
-नीरज
जब मैं कविता लिखता हूँ
एकाग्र मन से अब शब्दों में उलझकर शब्दों से खेलता हूँ शब्दों को पूज्यनीय चिंतनीय मान कर ये चादर बुनता हूँ खुद को लेकर थोड़ा चिंतित के मै क्य...
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ना घबरा ना डर अब चल उठ वीर किस्मत तो चमकेगी रोशनी अब सूर्य से ही नहीं चंदा से भी निकलेगी जिन जड़ों में जकडा है तू वही तेरी जफर की विशात दें...
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एकाग्र मन से अब शब्दों में उलझकर शब्दों से खेलता हूँ शब्दों को पूज्यनीय चिंतनीय मान कर ये चादर बुनता हूँ खुद को लेकर थोड़ा चिंतित के मै क्य...
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हड़बड़ हड़बड उठिए और काम पे भागिये ध्यान को जरा ध्यान से काम पे लगाइए दिमाग, गर्म , टेंशन, तनाव चिंता फिक्र सब छोड़िए मुस्कुराइए खुद से खु...