Wednesday, January 31, 2024

अब वक्त कहां?

सोचता हूँ संभालू हवा का रुख 
और सर्द हवा को अपने हाथों से रोक दूँ 
ये भी वही है वो भी वही थे 
ये वो सब एक से हाँ बदला नहीं जहाँ 
क्या करते हो नील अब इन सब को वक्त कहाँ 

चाहता हूँ, सूरज को जल्दी छत पर ला दूँ 
और धूप को जब चाहूँ छांव बना दूँ 
वही है राम, वही कृष्ण हां बदला नहीं जहाँ
क्या करते हो नील अब इन सब को वक्त कहाँ 

प्रयासरत हूँ की धरती को थोड़ा चपटा दूँ 
और सभी समुद्र को घर की थाली में समा दूँ
वही अंधेरा है वही है कालापन बदला नहीं जहाँ 
क्या करते हो नील अब इन सब को वक्त कहाँ 

सोचना चाहना और चिंतन करना छोड़ो
सुनो अब तुम आकाश की ओर उड़ो 
वही है पिता जी ,वही है माँ बदला नहीं जहाँ
क्या करते हो नील अब इन सब को वक्त कहाँ?

कितना अकेला हूँ मैं

इसका हूँ के उसका हूँ 

ना जाने मैं किस-किस का हूँ 

किसी का प्यारा तो किसी का खास हूँ 

कहीं मस्त तो कहीं अलबेला हूँ मैं 

दुनिया के इस जंजाल में कितना अकेला हूँ मैं 


कहने को कई दोस्तो का दोस्त हूँ 

और कुछो का तो अनजाना रिश्तेदार हूँ 

किसी की आश तो किसी की उम्मीद हूँ

कहीं खुशी तो कहीं बड़ा झमेला हूँ मैं 

दुनिया के इस जंजाल में कितना अकेला हूँ मैं 


कहीं तारा तो कहीं सूरज हूँ

किसी की गद्दी तो किसी का सरताज हूँ 

इस करोड़ों की आबादी में किसी का पुखराज हूँ 

कहीं एकदम आसान तो कहीं बड़ा हठेला हूँ मैं

दुनिया के इस जंजाल में कितना अकेला हूँ मैं


ये जंग अकेले जीतनी है मुझे मैं जानता हूँ 

ये सारा सफर अकेले तय करना है मुझे, मैं जानता हूँ 

इस भीड़ में पुष्पों सा खिलना है मुझे, मैं जानता हूँ 

कहीं बेशर्म तो कहीं बड़ा शर्मीला हूँ मैं

दुनिया के इस जंजाल में कितना अकेला हूँ मैं !

अहम का वहम !

सूरज की ललछइयां लगी जैसे रंगों की कलम
चदाँ की चाँदनी मानो हो गजलों की नज्म 
वो भी लगते रहे खास जैसे राह के सनम 
टूटता आया है टूटता रहेगा हमारा अहम का वहम 

बचपन में खिलौनों को जहाँ मान बैठे थे हम
धरती के नीचे एक दूसरी दुनिया है जान बैठे थे हम
एक-एक करके टूटते गए हमारे सारे भर्म 
टूटता आया है टूटता रहेगा हमारा अहम का वहम 

दुनिया को बस घोसले तक जानते थे हम
अंडे को बस जन्म का ग्रह मानते थे हम
अब जाकर समझ आया क्या है धर्म 
टूटता आया है टूटता रहेगा हमारा अहम का वहम 

बहने पूरे जीवन साथ रहेंगी मानते थे हम 
क्या पता था उनको भी जाना होगा एक अनजाने घर
वह चीज जिसके लिए लड़ते थे हम अब है नम
टूटता आया है टूटता रहेगा हमारा अहम का वहम!

पर्वत और चिड़िया का संवाद

हाँ हाँ मैं ही हूँ सबसे कठोर
और मैं ही सबसे शक्ति शाली
पर्वत हूँ मैं, इतनी ऊँचाई है मुझमें
बला बला बला... 

तभी उड़ी इक चिड़िया 
और सीधा जाकर बैठी
सबसे ऊँचे पर्वत की
सबसे ऊँची चोटी पर 
और गीत प्यार के गाने लगी
"हो पंख अगर तो 
क्या पर्वत क्या अंबर, सब नापे जा सकते है"

बाकी है

चढ़ना है ऊँचे पहाड़ों पर और लगानी है कई लम्बी छलांग हमे 
मिलना है हर पक्षी से और अभी कई पेड़ों का हिसाब बाकी है

जानना है धरती कितनी गोल है और कितना ऊँचा है आसमां 
पूछना है हर पथिक से कि और कितनी राह अभी बाकी है 

देखने हैं सारे मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर और कई तो गुरुद्वारे 
सुननी है गूंगो की सारी बातें और मेरी भी कुछ बात अभी बाकी है 

पहुंचना है वहाँ जहाँ कोई अब तलक पहुँच नहीं सका है 
करना है महसूस कि किसमे कितना अभी अपनापन बाकी है

लिखना है धरती ,अंबर और ये सारा नभ संचर 
कितने शमशान में जल गए और कितने जाने अभी बाकी हैं 

मेरे जिस्मों जहन के अभी कुछ ख्वाब बाकी है 
कि मुझे अभी मत मारो अभी मेरी कुछ किताब बाकी है l

Saturday, January 20, 2024

मैं चाहता हूँ, तुमसा बनना मेरी माँ।

कैसे दिन से पहले दिन करती हो माँ 

और सूरज से भी पहले तुम उठती हो माँ

फिर बिना इत्र के घर को महका देती हो माँ 

पूरा घर कैसे अपने इन्हीं हाथों से उठा लेती हो माँ

मुझे नहीं बनना कुछ बस मैं चाहता हूँ, तुमसा बनना मेरी माँ


कई लोगों से मिला और कइयों से बिछडा मैं माँ

कहीं हारा कहीं कुछ छूटा और फिर खाली हाथ लौटा मैं माँ

खाली हाथ घर आके तुम्हें देख लगा जैसे मैं ही खुदा हूँ माँ

आपका सिर्फ चेहरा ही मानो मेरी जन्नत हो माँ

मुझे नहीं बनना कुछ बस मैं चाहता हूँ, तुमसा बनना मेरी माँ


कई दफा तुमसे कैसे लिपट कर जोर से रोया मैं माँ

यहां पर लेकिन मैं अकेला नहीं हूँ मेरे साथ एक शब्द है माँ 

कोशिश में हूँ और एक दिन घर लौटूंगा मैं माँ 

और तुम्हारी तरह ही तुमसे लिपटकर तुम्हें ठीक कर दूंगा माँ 

मुझे नहीं बनना कुछ बस मैं चाहता हूँ, तुमसा बनना मेरी माँ 


अभी भी मेरा मन हर बीमारी में डॉक्टर से पहले तुम्हें याद करता है माँ

माँ सुनो ना मैं थोड़ा सा यहां बीमार हूँ कई ऐसी बीमारियों का

जिनका तुम्हारे सिवा कोई डॉक्टर नहीं और ना ही कोई इलाज माँ 

मेरे बिना ही कुछ किये मुझे राजा बताती हो माँ 

मुझे नहीं बनना कुछ बस मैं चाहता हूँ, तुमसा बनना मेरी माँ!


पापा की एक आवाज़

गेहुआ रंग और मुझ से थोड़ा सा छोटा कद 
और झुरीयों का स्वागत करते उनके गाल 
पहले से हल्के हाथ और सिकुड़ती उनकी खाल
भले कहूं मैं बेपरवाह या अब अच्छे नहीं है आप 
पापा आपकी ऊंचाई आपकी उम्र में आकर ही समझ आएगी
पापा कई बार मन करता है के डांट के करे कोई आगाज़
पर हां पापा बहुत शुकूं भरी होती है आपकी इक आवाज

हां अभी मैं जवानी के नशे में बुढ़ापे को नहीं समझ पाता
मैं चलता हुं पर आपकी तरह कतई नहीं चल पाता 
पापा कर दो ना मुझे फिर से इतना छोटा के समा जाऊं आपकी बाहों में 
पापा आपकी डांट नीम सी है जो कड़वी है पर बड़ी गुडकारी है 
पापा कई बार मन करता है के डांट के करे कोई आगाज़
पर हां पापा बहुत शुकूं भरी होती है आपकी इक आवाज
-नीरज 

शहर आज परेशान है

ये शहर आज परेशान सा क्यूं है 
शायद इसे याद आया हो कुछ अतीत
वो पहले की हवा वो चिड़ियों की मधुर आवाज
लह लहाती सरसों दूर-दूर तक हरियाली 
शायद शहर का गम बड़े मकान में 
और इन बड़ी चौड़ी सड़कों में दफ्न हो 
मनो ये शहर आज परेशान है 

ये शहर आज परेशान सा क्यूं है 
शायद इसे याद आया हो कुछ अतीत
वो गांव की कच्ची सड़के कच्चे मकान
वो पीपल, बरगद और नीम पे पड़ा झूला 
और वो जुगनू की चमक और शियारो का हुय्याना 
शायद शहर का गम इन लप-लपाती लाइटों में दफ्न हो 
मानो ये शहर आज परेशान है

 ये शहर आज परेशान सा क्यूं है 
शायद इसे याद आया हो कुछ अतीत
वो बारिश के बाद मिट्टी का महकना और चाहंटा
रात से पहले सबका सो जाना और कुत्ते बिल्लियों का पहरा
शायद शहर का गम गलियों के बड़े दरवाजों व उन पर खड़े
पहरेदारों और बारिश के बाद चम चमकती नई सड़कों में दफन हो
मानो ये शहर आज परेशान है।
-नीरज 

बस अब बहोत हुआ

कहां गई समझ तुम्हारी कहां गए वो तारे 
वो बातें जिनका दीवारों तक पर होता था असर
खुद को तोड़ना यूं रोज-रोज अक्हुच्छ हुआ 
जो हुआ सो हुआ मानो बस अब बहोत हुआ

हनुमत वीर अपनी शक्ति अब पहचानो 
अपनी दिशा में थोड़ा और उजाला अब डालो 
जरा सा अंधेरा था ए अब सब उजियाला कर डालो 
जो हुआ सो हुआ मानो बस अब बहोत हुआ

मरे तो मर जाए ये सारा जहां तुम में,तुम तो हो
अगर नहीं तो फिर ढूंढो और इंसा तो बनावो
अब इस बात का चिंतन बहुत हुआ
जो हुआ सो हुआ मानो बस अब बहोत हुआ।
-नीरज 

वो फूल नहीं कांटे थे

जो बीत गए हम और हो गए हमारा कल 
और जिन रातों ने शुकुं से हमें सोने ना दिया कल 
और दिन में खूब उदासी का दफन बने थे 
जो बीत गए ऐसे लम्हे वो फूल नहीं कांटे थे 

कांटों से इतना प्रेम ही क्यों जब चुभना उनका कर्म 
हां जब जन्म लिया था कांटों ने तब थे वो बड़े नर्म 
नरमी बाद बने सख्त जो वही हाथ चरते थे
जो बीत गए ऐसे लम्हे वो फूल नहीं कांटे थे 

वृक्ष में फूलों से पहले अक्सर ही कांटे आते हैं 
भला उन कांटों के चक्कर में हम फूल क्यूं भूलाते हैं 
फूल हो फूल से जियो ना कि वो जो झाड़ी थे
जो बीत गए ऐसे लम्हे वो फूल नहीं कांटे थे 

खुद को उनसे निकाल कर लाना और नए होना
देखना पुखराज हीरे हो और हीरे को पाना
टूटे गिलास टूटे तारे इनके कहां इतने चिंतन थे
जो बीत गए ऐसे लम्हे वो फूल नहीं कांटे थे 

अब फूलों की बारी है और फेंको इन कांटों की झड़ी को
सुगंध लो दिल जीत लो और फेंक दो उन झाड़ी को
वो तुम्हें झुकाते गिराते रुलाते और गिड गिडवाते थे
जो बीत गए ऐसे लम्हे वो फूल नहीं कांटे थे 

कहीं गई तुम्हारी सुंदरता या चंचलता क्या 
या अंत हुआ उस तेज का जिस पर था तुमको नाज़
चिल्लाओ उठाओ भगाओ उन्हें जो तुम्हें डुबोते थे
जो बीत गए ऐसे लम्हे वह फूल नहीं काटे थे 

मुस्कुराओ और चमको है धरती के राज पुत्र
ए जग सारा का सारा तुम्हारा है और तुम ही हो इसके पुत्र
महको जग महकेगा तुम थे ईश्वर वो नश्वर थे 
जो बीत गए ऐसे लम्हे वो फूल नहीं कांटे थे।
-नीरज

अब हम हम हो जाते है।

क्या हुआ अगर आज तेरे घर की छत पर उजाला नहीं
क्या हुआ अगर आज तेरे घर की रसोई में निवाला नहीं
बस तनिक तनिक हिम्मत से दृढ़ तुंग भी हट जाते हैं 
चलो अब अपनी परवरिश के लिए हम हम हो जाते हैं 

क्या हुआ अगर समय तेरा समावेश नहीं 
क्या हुआ अगर तेरा कोई परिवेश नहीं 
सैंकेंडो की सुई से सिखो क्षण क्षण पुरे घंटे बन जाते हैं 
कब तक यूं इतराओगे चलो अब हम हम हो जाते हैं

क्या हुआ अगर तुझ पर किसी का हाथ नहीं 
क्या हुआ अगर बज उड़ा बिन बारात नहीं 
धीरे-धीरे बस रुकना नहीं रास्ते अपने आप खत्म हो जाते हैं
मिलेगा यह कतरा दरिया में तो चलो हम हम हो जाते हैं।
-नीरज 

बस एक कदम और

चलिए ना मत ठहरिए सच में ठहरना ठीक नहीं
हे नभ संचर से शक्तिशाली हे हिमनिद्र
तुम्हीं अर्जुन के गांडीव, हे शिव के कोदंड को 
तोड़ने वाले राम बस एक कदम और।

चलिए ना मत ठहरिए सच में ठहरना ठीक नहीं
चलते रहो और लिखते रहो और रखो याद इतिहास
हे सम्राट से विजेता और हे अंग्रेजों को 
भगाने वाले गांधी बस एक कदम और

चलिए ना मत ठहरिए सच में ठहरना ठीक नहीं 
गढ़ते रहो खुद में मोती और तरासो हीरे
हे चाणक्य के चंद्रगुप्त हे भारतवर्ष के
सम्राट बस एक कदम और

चलिए ना मत ठहरिए सच में ठहरना ठीक नहीं
खुद को जानो पहचानो हे हनुमान खुद ही बानो
खुद के जामवंत और कर दो पार
ऐ विशाल समुद्र बस एक कदम और ।
- नीरज 

Friday, January 19, 2024

रातें जागी है तो कहानियां तो बनेंगी

ना घबरा ना डर अब चल उठ वीर किस्मत तो चमकेगी
रोशनी अब सूर्य से ही नहीं चंदा से भी निकलेगी 
जिन जड़ों में जकडा है तू वही तेरी जफर की विशात देंगी 
क्या कहते हैं वो ना सुन तूने रातें जागी हैं तो कहानियां तो बनेंगी 

रिश्ते नाते यार व्यवहार सब की हिकमत बदलेगी 
मां वही फिर बचपन की लोरियां गढ़ेगी 
पिताजी की अंधरी दुनिया रोशनी में तब बदलेगी 
क्या कहते हैं वो ना सुन तूने रातें जागी हैं तो कहानियां तो बनेंगी 

जो खड़े हैं बाजार में बताते तेरे किरदार को
दे इन्हें सहलाने की चोट हो जोरदार जो
बदले पछतावे की नहीं ये वो जो जग में झलकेगी 
क्या कहते हैं वो ना सुन तूने रातें जागी हैं तो कहानियां तो बनेंगी ।
-नीरज 

क्या-क्या बताऊं

मेरी समता बताऊँ या मेरी विषमता बताऊँ

मेरी सफलता बताऊँ या मेरी विफलता बताऊँ

मेरे टूटे हुए सपने बताऊँ या पूरे हुए ख्वाब बताऊँ

बातों के पिटारों से सोचता हूं तुम्हें क्या-क्या बताऊँ  


मेरी नादानियां बताऊँ या मेरी चालाकियां बताऊँ

मेरी समझदारियां बताऊँ या मेरी बेवकूफियां बताऊँ 

मेरे कुछ दोस्त बताऊँ या मेरे कुछ दुश्मन बताऊँ 

बातों के पिटारों से सोचता हूं तुम्हें क्या-क्या बताऊँ  


मेरे उजले दिन बताऊँ या मेरी काली रातें बताऊँ

मेरा कुछ डर बताऊँ या मेरी कुछ ताकत बताऊँ

मेरा हंसना बताऊँ या मेरा रोना बताऊँ

बातों के पिटारों से सोचता हूं तुम्हें क्या-क्या बताऊँ  


मेरी लिखावट बताऊँ या जो लिख नहीं सका वो बताऊँ

मेरी पढ़ी-लिखी इलम बताऊँ या जो पढूंगा वो बताऊँ

मेरे कुछ अच्छे रंग बताऊँ या मेरे कुछ बुरे ढंग बताऊँ

बातों के पिटारों से सोचता हूं तुम्हें क्या-क्या बताऊँ ।

-नीरज 

Thursday, January 18, 2024

मेरे गांव की वो सड़क

सवेरे सवेरे उठ कर दिखती थी जो सड़क 

जोड़ती थी मेरे घर को बड़ी सड़क से वो सड़क

कहीं ठीक तो कहीं जरा सी टूटी-फूटी वो सड़क

ज्यादा चौड़ी नहीं ना ज्यादा छोटी है वो  सड़क

आखिर कैसी भी है याद आती है मेरे गांव की वो सड़क


कुछ दूर चला जाता था तब भी घर दिखाती वो सड़क 

मैं कहीं ठहर जाता तो धूप से मुझे बचाती वो सड़क

पेड़ों से घिरी खेतों किनारे, घांसो से भरी वो सड़क 

ज्यादा चौड़ी नहीं ना ज्यादा छोटी है वो सड़क

आखिर कैसी भी है याद आती है मेरे गांव की वो सड़क


मेरे घर अक्सर खुशियां लाती है वो सड़क

मासी बुआ नाना नानी सबको घर लाती है वो सड़क 

दिवाली की मिठाई होली के रंग, राखी पे राखी लाती है वो सड़क

ज्यादा चौड़ी नहीं ना ज्यादा छोटी है वो सड़क

आखिर कैसी भी है याद आती है मेरे गांव की वो सड़क

-नीरज 




उम्मीद ही तो है

उम्मीद कितनी बेहतर चीज है  मुझे कुछ तुमसे, कुछ तुमको मुझसे जैसे धरती को आसमां से और बच्चे को अपनी माँ से उम्मीद पर ही तो टिका है ये सारा जहा...