Friday, February 23, 2024

उम्मीद ही तो है

उम्मीद कितनी बेहतर चीज है 
मुझे कुछ तुमसे, कुछ तुमको मुझसे
जैसे धरती को आसमां से
और बच्चे को अपनी माँ से
उम्मीद पर ही तो टिका है ये सारा जहाँ 
जैसे किसान करता उम्मीद अंबर से 

उम्मीद ही तो है जो तुम्हें मुझे अक्सर चलाती है
और उम्मीद ही तो है, शहरी को गांव तक बुलाती है 
बस को सवारी से
सवारी को बस से 
हमें तुमसे तुम्हें हमसे 
कभी-कभी सोचता हूं 
अगर ये सभ्य उम्मीद ना होती
क्या हम यहां तलक आ पाते 
माउंट एवरेस्ट की चोटी को यूं हिला पाते 
उम्मीद है तो मैं तुम में 
और तुम मुझ में जिंदा हो 

उम्मीद कितनी बेहतर चीज है 
मुझे कुछ तुमसे कुछ तुमको मुझसे 
भूखे को भोजन से 
प्यासे को पानी से 
पानी को नदियों से 
और नदियों को समुद्र से 
पथिक को राह से और राह को पथिक से 
उम्मीद ही तो है मझदार को किनारो से 

पहाड़ों को घाटियों से 
राजा को रानियों से प्रेमी को प्रेमिका से 
कभी-कभी लगता है उम्मीद ही स्तंभ है 
घर की दीवारों को छत से और छत को दीवारों से
जवाब को अपने सवालों से 
उम्मीद है तो मैं तुम में 
और तुम मुझ में जिंदा हो!

Friday, February 2, 2024

घड़ी

एक सुबह घने कोहरे के बीच
मैं और पिताजी 
अपनी दिनचर्या को शुरू करने के लिए साथ चल रहे थे 

मैं असमंजस में था कि घड़ी कैसे चलती होगी 
कैसे ये वक्त बताती होगी 
और ये तीन सुइयाँ कैसे हर चीज़ का वक्त निर्धारित करती होंगी 
कैसे पता लगता है के क्या वक्त हो गया है?
पिता जी का दफ्तर का आना और जाना घड़ी ने निर्धारित कर रखा है
घड़ी ने नहीं बख्शा मां के घर के सारे कामों को
और तो और टेलीविजन पर दीदी के सारे प्रोग्रामो को 

यहाँ तक मेरे खेलने तक के समय में भी बैठी घड़ी
मेरे विद्यालय की सारी व्यवस्था में भी घड़ी 
और फिर घर की छोटी छोटी चीजों पर भी घड़ी 
घड़ी घड़ी घड़ी हाय ये घड़ी ……….

बस का घड़ी के वक्त से आना 
और ट्रेन का इसी के वक्त से चलना 
आसमां में उड़ते जहाज को भी उड़ने और उतरने
के लिए चाहिए घड़ी ,
ऐसे लगता था जैसे मानो चारों ओर सिर्फ घड़ी ही हो 
और ये सारा जहां सिर्फ घड़ी के इर्द - गिर्द घूम रहा हो
ये धरती ये अंबर सब लगा रहे हो इसके चक्कर 

मुझे लगा अगर मुझे घड़ी देखने आ गया 
तो मैं भी इस जहां के साथ चल सकता हूँ 
छोटा बच्चा सच में काफी छोटा होता है
मैंने अपने पिताजी से बड़े प्यार से पूछा 
"पापा मुझे घड़ी देखना सिखा दोगे?"
पर पापा ने मुझे पाँच के पहाडे को याद करने की सलाह दे दी ,
मैं पापा की सलाह मानता कैसे नहीं
और मैंने तीन से पहले पाँच का पहाड़ा याद कर लिया 

अगली सुबह फिर मेरे वही कुछ सपने
मैने पिता जी से फिर कहा 
मुझे सिखा दो ना घड़ी देखना 
ताकि मैं चल सकूं इस सकल विश्व के साथ 
और देख सकूं हर वक्त घड़ी 
और हर वक्त चल सकूं घड़ी के साथ 

पापा के चेहरे पर दिखी इक मुस्कान
और थोड़ा सा मुझे याद हुए
5 के पहाडे का अभिमान 
पापा ने बता दी मुझे वो तरकीब 
तब से लेकर अब तक कैद मे हूं 
घड़ी के जाल में
अब तो ये मेरे इतना नजदीक आ गई है
की मेरी ही बाईं कलाई पर घर है इसकाl

उम्मीद ही तो है

उम्मीद कितनी बेहतर चीज है  मुझे कुछ तुमसे, कुछ तुमको मुझसे जैसे धरती को आसमां से और बच्चे को अपनी माँ से उम्मीद पर ही तो टिका है ये सारा जहा...