ये शहर आज परेशान सा क्यूं है
शायद इसे याद आया हो कुछ अतीत
वो पहले की हवा वो चिड़ियों की मधुर आवाज
लह लहाती सरसों दूर-दूर तक हरियाली
शायद शहर का गम बड़े मकान में
और इन बड़ी चौड़ी सड़कों में दफ्न हो
मनो ये शहर आज परेशान है
ये शहर आज परेशान सा क्यूं है
शायद इसे याद आया हो कुछ अतीत
वो गांव की कच्ची सड़के कच्चे मकान
वो पीपल, बरगद और नीम पे पड़ा झूला
और वो जुगनू की चमक और शियारो का हुय्याना
शायद शहर का गम इन लप-लपाती लाइटों में दफ्न हो
मानो ये शहर आज परेशान है
ये शहर आज परेशान सा क्यूं है
शायद इसे याद आया हो कुछ अतीत
वो बारिश के बाद मिट्टी का महकना और चाहंटा
रात से पहले सबका सो जाना और कुत्ते बिल्लियों का पहरा
शायद शहर का गम गलियों के बड़े दरवाजों व उन पर खड़े
पहरेदारों और बारिश के बाद चम चमकती नई सड़कों में दफन हो
मानो ये शहर आज परेशान है।
-नीरज
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