क्या हुआ अगर आज तेरे घर की रसोई में निवाला नहीं
बस तनिक तनिक हिम्मत से दृढ़ तुंग भी हट जाते हैं
चलो अब अपनी परवरिश के लिए हम हम हो जाते हैं
क्या हुआ अगर समय तेरा समावेश नहीं
क्या हुआ अगर तेरा कोई परिवेश नहीं
सैंकेंडो की सुई से सिखो क्षण क्षण पुरे घंटे बन जाते हैं
कब तक यूं इतराओगे चलो अब हम हम हो जाते हैं
क्या हुआ अगर तुझ पर किसी का हाथ नहीं
क्या हुआ अगर बज उड़ा बिन बारात नहीं
धीरे-धीरे बस रुकना नहीं रास्ते अपने आप खत्म हो जाते हैं
मिलेगा यह कतरा दरिया में तो चलो हम हम हो जाते हैं।
-नीरज
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