Thursday, January 18, 2024

मेरे गांव की वो सड़क

सवेरे सवेरे उठ कर दिखती थी जो सड़क 

जोड़ती थी मेरे घर को बड़ी सड़क से वो सड़क

कहीं ठीक तो कहीं जरा सी टूटी-फूटी वो सड़क

ज्यादा चौड़ी नहीं ना ज्यादा छोटी है वो  सड़क

आखिर कैसी भी है याद आती है मेरे गांव की वो सड़क


कुछ दूर चला जाता था तब भी घर दिखाती वो सड़क 

मैं कहीं ठहर जाता तो धूप से मुझे बचाती वो सड़क

पेड़ों से घिरी खेतों किनारे, घांसो से भरी वो सड़क 

ज्यादा चौड़ी नहीं ना ज्यादा छोटी है वो सड़क

आखिर कैसी भी है याद आती है मेरे गांव की वो सड़क


मेरे घर अक्सर खुशियां लाती है वो सड़क

मासी बुआ नाना नानी सबको घर लाती है वो सड़क 

दिवाली की मिठाई होली के रंग, राखी पे राखी लाती है वो सड़क

ज्यादा चौड़ी नहीं ना ज्यादा छोटी है वो सड़क

आखिर कैसी भी है याद आती है मेरे गांव की वो सड़क

-नीरज 




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