Tuesday, June 16, 2020

ये तनाव क्या बुखार है?

तनाव हां हां तनाव मन में उपजा इक विकार है
मन की स्थिति व परिस्थिति में जन्मा इक विचार है
तनाव एक द्वन्द है जो मन व भावना में करे दरार है
समझना मुझे कभी जब मैं ना रहूं ये तनाव क्या बुखार है?

मन अशांत भावना स्थिर और शरीर अव्यवस्था की इक मार है 
लाख समझने समझाने की कोशिश कर के देखा ये सब बेकार है 
मैं जानता हूं तनाव सच में इक बेहद गंदा सा किरदार है 
समझना मुझे कभी जब मैं ना रहूं ये तनाव क्या बुखार है?

सब उस तरफ मैं इस तरफ हां ये इसी पछ का हकदार है 
कोशिश की थी मैंने कि बचा लो मुझे मेरा सब कुछ लाचार है 
जब वजह नहीं कोई मेरे पास बताओ कहाँ मेरी मजार है 
समझना मुझे कभी जब मैं ना रहूं ये तनाव क्या बुखार है?

सूर्य नदी पर्वत ये सब आखिर रोक लेते हैं मुझे इसमें ये जो बाजार है 
सूर्य कहे मैं लड़ लड़ा कर आता हूं आखिर ये तो अम्बर का सरदार है 
ये बेहद मजबूत पर्वत कहे नदी को  ये देखो मेरा यही आधार है 
समझना मुझे कभी जब मैं ना रहूं ये तनाव क्या बुखार है?
#नीरज

Wednesday, June 3, 2020

हाँ मैं मैदान में हूं !

मैदानों को ये दिन प्रतिदिन मैं आभास कराता
इक राह सुगम बेशक धीरे-धीरे मैं आज बनाता 
मिट्टी वैसी सजी नहीं कुछ उथल पुथल उफान में हूं
तनिक धीरे ही सही पर हाँ मैं मैदान में हूं ! 


कुछ ने कहा लौट जाओ हां मैं भी उन्हें क्या बताता
यह पालक की खेती नहीं हाँ मैं क्युं गाजर का आभास दिलाता
शांति है बाहर कितनी पर अंदर इक तूफान में हूं
तनिक धीरे ही सही पर हाँ मैं मैदान में हूं ! 


खेल देखने वालों को नहीं पर मैदां को मैं हर रोज दिखाता
मालिक दिया नहीं जुगनू हूँ रात में ऐसे कैसे बुझा जाता
खूब हार हारा हूं मगर मन की कुटिया के विजय विमान में हूं
तनिक धीरे ही सही पर हाँ मैं मैदान में हूं !


अब वापस लौट सकता नहीं यूं बताओ कैसे मैं रुक जाता
गीत में लोरी में हर संध्या माँ से धीरज मैं पाता
खट्टा बेशक है ये फल पर मैं इसके स्वाद में हूँ
तनिक धीरे ही सही पर हाँ मैं मैदान में हूं ! 


राहें जानती हैं मेरे कदमों व चाल मेरे भार को 
क्या परिचय दूं मैं खेत व तेरे खलियान को 
यूं ही आऊंगा यूं ही चलूंगा मैं इक नशे के जहान में हूं
तनिक धीरे ही सही पर हाँ मैं मैदान में हूं !


धीरे से अंधेरे में देर तक कोने में निखार इक इंसान को
कलम किताब पन्नो को एहसास करा खुद के किरदार को
सूर्य की भांति रोज निकलता मैं तो बादलों में अकेला मेहमान हूं
तनिक धीरे ही सही पर हाँ मैं मैदान में हूं !
-नीरज नील 

Wednesday, April 29, 2020

जिंदगी तुम इलाहाबाद क्यूँ नहीं हो जाती !

देर रात सोकर भी प्रातः जल्दी उठने लगा हूँ
कहां तो संगम का किनारा था कहां बाथरूम में नहाने लगा हूँ  
वही पढ़ना फिर पढ़ना जो वक्त बचे उसमें भी पढने लगा हूं  
अब ये थकावट की रातें आबाद क्यूँ नहीं हो जाती 
थक गया हूं ऐ जिंदगी तुम इलाहाबाद क्यूँ नहीं हो जाती !

मुझे लोग अब समझते नहीं ये बात मैं अब समझने लगा हूं 
वही साइकिल की सवारी,साइकिल की दौड़ पर अब पैदल चलने लगा हूं 
सब कुछ पढ़ना समझना चाहता हूं पर रातों में अब आँख थकने लगी है 
शायद ये बेइंतेहा सफर है मेरा अब ये राहें उन्माद क्यूँ नहीं जाती  
थक गया हूं ऐ जिंदगी तुम इलाहबाद  क्यूँ  नहीं हो जाती ! 

सुना है तुमने अपना नाम खो दिया अब तो मैं भी खोने लगा हूं 
संगम प्रयाग सलोरी विश्वविद्यालय सब होंगे वंही देखो क्या मैं दिखने लगा हूं 
जिंदगी तेरे खूब नोट्स बनाए कई पन्ने भर दिये अब तो तुझे दोहराने लगा हूं 
कमर की पीड़ा देख मेरा हौसला बर्बाद क्यूँ नहीं हो जाती 
थक गया हूं ऐ जिंदगी तुम इलाहबाद क्यूँ नहीं हो जाती !

सरकारी निजी सब पुस्तकालय छोड़ खुद को इक कमरे में कैद पाने लगा हूँ  
कहाँ वो बरगद के नीचे कुल्हड़ की चाय यंहा खुद की बनी चाय पिने लगा हूँ 
किसी दिन तो निकलेगा सूरज मेरा ये बातें जिंदाबाद क्यूँ नहीं हो जाती 
थक गया हूं ऐ जिंदगी तुम इलाहबाद क्यूँ नहीं हो जाती !
#नीरज 

Saturday, February 1, 2020

जैसे पिछला साल गवांया वैसे मुझे ना गवाँना

जैसे पिछला साल गवांया वैसे मुझे ना गवाँना
मैं तो टवेंटी टवेंटी हूं इसमें जरूर कुछ बड़ा कर जाना

नई इल्म में नया किरदार नया इंसान बनाना
पिछले वर्ष में झांकना कभी-कभी पर वो गलतियां ना दोहराना

नई उम्मीद की किरण मैं रोज ही लाता हूं थोड़ी रोशनी तुम भी ले जाना
बादलों को काटता पीटता पछाड़ता मैं तुम भी कुछ यूं ही प्रातः आना

जैसे पिछला साल गवांया वैसे मुझे ना गवाँना
मैं तो टवेंटी टवेंटी हूं इसमें जरूर कुछ बड़ा कर जाना

तोड़ना तारे चंदा सारे के सारे पर सूरज से भी मिल आना
क्या पाया क्या खोया भूलो इस साल इक सुंकू का आशियां बनाना

हां मैं नया साल हूं मेरे हर पल को नया नया सा मनाना
अभी थोड़ा और तो चलो अब ज्यादा दूर नहीं आशियाना

जैसे पिछला साल गवांया वैसे मुझे ना गवाँना
मैं तो टवेंटी टवेंटी हूं इसमें जरूर कुछ बड़ा कर जाना!

उम्मीद ही तो है

उम्मीद कितनी बेहतर चीज है  मुझे कुछ तुमसे, कुछ तुमको मुझसे जैसे धरती को आसमां से और बच्चे को अपनी माँ से उम्मीद पर ही तो टिका है ये सारा जहा...