और जिन रातों ने शुकुं से हमें सोने ना दिया कल
और दिन में खूब उदासी का दफन बने थे
जो बीत गए ऐसे लम्हे वो फूल नहीं कांटे थे
कांटों से इतना प्रेम ही क्यों जब चुभना उनका कर्म
हां जब जन्म लिया था कांटों ने तब थे वो बड़े नर्म
नरमी बाद बने सख्त जो वही हाथ चरते थे
जो बीत गए ऐसे लम्हे वो फूल नहीं कांटे थे
वृक्ष में फूलों से पहले अक्सर ही कांटे आते हैं
भला उन कांटों के चक्कर में हम फूल क्यूं भूलाते हैं
फूल हो फूल से जियो ना कि वो जो झाड़ी थे
जो बीत गए ऐसे लम्हे वो फूल नहीं कांटे थे
खुद को उनसे निकाल कर लाना और नए होना
देखना पुखराज हीरे हो और हीरे को पाना
टूटे गिलास टूटे तारे इनके कहां इतने चिंतन थे
जो बीत गए ऐसे लम्हे वो फूल नहीं कांटे थे
अब फूलों की बारी है और फेंको इन कांटों की झड़ी को
सुगंध लो दिल जीत लो और फेंक दो उन झाड़ी को
वो तुम्हें झुकाते गिराते रुलाते और गिड गिडवाते थे
जो बीत गए ऐसे लम्हे वो फूल नहीं कांटे थे
कहीं गई तुम्हारी सुंदरता या चंचलता क्या
या अंत हुआ उस तेज का जिस पर था तुमको नाज़
चिल्लाओ उठाओ भगाओ उन्हें जो तुम्हें डुबोते थे
जो बीत गए ऐसे लम्हे वह फूल नहीं काटे थे
मुस्कुराओ और चमको है धरती के राज पुत्र
ए जग सारा का सारा तुम्हारा है और तुम ही हो इसके पुत्र
महको जग महकेगा तुम थे ईश्वर वो नश्वर थे
जो बीत गए ऐसे लम्हे वो फूल नहीं कांटे थे।
-नीरज
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