Wednesday, January 31, 2024

अहम का वहम !

सूरज की ललछइयां लगी जैसे रंगों की कलम
चदाँ की चाँदनी मानो हो गजलों की नज्म 
वो भी लगते रहे खास जैसे राह के सनम 
टूटता आया है टूटता रहेगा हमारा अहम का वहम 

बचपन में खिलौनों को जहाँ मान बैठे थे हम
धरती के नीचे एक दूसरी दुनिया है जान बैठे थे हम
एक-एक करके टूटते गए हमारे सारे भर्म 
टूटता आया है टूटता रहेगा हमारा अहम का वहम 

दुनिया को बस घोसले तक जानते थे हम
अंडे को बस जन्म का ग्रह मानते थे हम
अब जाकर समझ आया क्या है धर्म 
टूटता आया है टूटता रहेगा हमारा अहम का वहम 

बहने पूरे जीवन साथ रहेंगी मानते थे हम 
क्या पता था उनको भी जाना होगा एक अनजाने घर
वह चीज जिसके लिए लड़ते थे हम अब है नम
टूटता आया है टूटता रहेगा हमारा अहम का वहम!

No comments:

Post a Comment

उम्मीद ही तो है

उम्मीद कितनी बेहतर चीज है  मुझे कुछ तुमसे, कुछ तुमको मुझसे जैसे धरती को आसमां से और बच्चे को अपनी माँ से उम्मीद पर ही तो टिका है ये सारा जहा...