मानो यही जीवन हो और यही हर रोज जानना
तूफानों में पंख फैलाए उड़ना अब कम भी नहीं है
तुम यूं ही लड़ना रोज क्योंकि अंतिम कुछ भी नहीं है
देखना छुलेना फूंकना ढकेलना और फिर झकझोरना
दिखादो मैदा को के तुम ही हो सबसे बड़े शेर यहां
आसमां को छूकर आओ क्यूंकि तुम्हारी उड़ान अब कम भी नहीं है
तुम यूं ही लड़ना रोज क्योंकि अंतिम कुछ भी नहीं
घिसाड़ना चलना दौड़ना और फिर ढकेलना
खिला दो क्यारी का हर फूल तुम ही सबसे बड़े माली यहां
नापों पर्वत की हर छोटी क्यूंकि तुम्हारी चाल कुछ कम भी नहीं हैं
तुम यूं ही लड़ना रोज क्यूंकि अंतिम कुछ भी नहीं हैं
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