Thursday, December 12, 2024

खैर मैं कहीं जा भी नहीं सकता

खुद में रहने की आदत है मुझे
यूं तुम्हें अपने ख्यालों में मिला नहीं सकता 
आंखों से देखे ख्वाब, पैरों से पीछा करता रहा 
कितना थक गया हूं ये तुम्हें बता भी नहीं सकता 
खैर मैं कहीं जा भी नहीं सकता 

किसी को भी नहीं इजाजत की बिना मेरी मर्जी मुझे छू सके
मैं गर गिर भी जाऊं तो कोई मुझे उठा भी नहीं सकता 
अभी बहोत दूर तलक नहीं आया तो मैं यूं घबरा भी नहीं सकता
खैर मैं कहीं जा भी नहीं सकता

कुछ अधूरे ख्वाब है 
उनको पूरा करने की खातिर मेरे हाथ में मेरे वालिद की दवात है
जमाना गिरे तो गिर जाए 
मैं पिताजी की वो दवात हिला भी नहीं सकता
खैर मैं कहीं जा भी नहीं सकता l

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