और झुरीयों का स्वागत करते उनके गाल
पहले से हल्के हाथ और सिकुड़ती उनकी खाल
भले कहूं मैं बेपरवाह या अब अच्छे नहीं है आप
पापा आपकी ऊंचाई आपकी उम्र में आकर ही समझ आएगी
पापा कई बार मन करता है के डांट के करे कोई आगाज़
पर हां पापा बहुत शुकूं भरी होती है आपकी इक आवाज
हां अभी मैं जवानी के नशे में बुढ़ापे को नहीं समझ पाता
मैं चलता हुं पर आपकी तरह कतई नहीं चल पाता
पापा कर दो ना मुझे फिर से इतना छोटा के समा जाऊं आपकी बाहों में
पापा आपकी डांट नीम सी है जो कड़वी है पर बड़ी गुडकारी है
पापा कई बार मन करता है के डांट के करे कोई आगाज़
पर हां पापा बहुत शुकूं भरी होती है आपकी इक आवाज
-नीरज
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