और सर्द हवा को अपने हाथों से रोक दूँ
ये भी वही है वो भी वही थे
ये वो सब एक से हाँ बदला नहीं जहाँ
क्या करते हो नील अब इन सब को वक्त कहाँ
चाहता हूँ, सूरज को जल्दी छत पर ला दूँ
और धूप को जब चाहूँ छांव बना दूँ
वही है राम, वही कृष्ण हां बदला नहीं जहाँ
क्या करते हो नील अब इन सब को वक्त कहाँ
प्रयासरत हूँ की धरती को थोड़ा चपटा दूँ
और सभी समुद्र को घर की थाली में समा दूँ
वही अंधेरा है वही है कालापन बदला नहीं जहाँ
क्या करते हो नील अब इन सब को वक्त कहाँ
सोचना चाहना और चिंतन करना छोड़ो
सुनो अब तुम आकाश की ओर उड़ो
वही है पिता जी ,वही है माँ बदला नहीं जहाँ
क्या करते हो नील अब इन सब को वक्त कहाँ?
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