वैलंटाइन के दिन सबके इजहार का वक्त था
मौसम भी दोपहर के बाद का जरा सा शख्त था
कुछ पते से निकलने से पहले सूना गए परवान
कुछ को इंतजार था लक्ष्य का हाय मेरे वो जवान
पुलवामा की सड़को पर माटी में जो नगीना पड़ा था
उसका शरीर व सीना भर्ती से पहले ही तगड़ा था
कुछ उठ उठ कह रहे पहले सुनाया होता फरमान
तो आतंकी तेरे चीथड़े चीथड़े करते मेरे वो जवान
हम कल भी कुछ न सीखे आज भी सब व्यस्त था
कुछ के 1 पर भारत माँ का 42 सूर्य हुआ अस्त था
दहल गई होगी माँ हॉल देख उस का सीना लुहान
पत्नी पूछ रही थी कब लौटेगा घर मेरा वो जवान
फिर अगली सुबह उजला सूर्य उगने को तैयार न था
कुछ तो शर्म आयी होती उनके हाथो में औजार न था
एक सैनिक टूट कर उठा और बोला मेरा देश महान
लहू में लहू से लिप्त फिर तिरंगे में मेरा वो जवान
-नीरज नील
#पुलवामा_के_जवानो_को_समर्पित !
No comments:
Post a Comment