Wednesday, August 24, 2022

हाय मेरे वो जवान

 वैलंटाइन के दिन सबके इजहार का वक्त था

मौसम भी दोपहर के बाद का जरा सा शख्त था

कुछ पते से निकलने से पहले सूना गए परवान

कुछ को इंतजार था लक्ष्य का हाय मेरे वो जवान


पुलवामा की सड़को पर माटी में जो नगीना पड़ा था

उसका शरीर व सीना भर्ती से पहले ही तगड़ा था

कुछ उठ उठ कह रहे पहले सुनाया होता फरमान

तो आतंकी तेरे चीथड़े चीथड़े करते मेरे वो जवान


हम कल भी कुछ न सीखे आज भी सब व्यस्त था

कुछ के 1 पर भारत माँ का 42 सूर्य हुआ अस्त था

दहल गई होगी माँ हॉल देख उस का सीना लुहान 

पत्नी पूछ रही थी कब लौटेगा घर मेरा वो जवान


फिर अगली सुबह उजला सूर्य उगने को तैयार न था

कुछ तो शर्म आयी होती उनके हाथो में औजार न था

एक सैनिक टूट कर उठा और बोला मेरा देश महान

लहू में लहू से लिप्त फिर तिरंगे में मेरा वो जवान

-नीरज नील 


#पुलवामा_के_जवानो_को_समर्पित !

No comments:

Post a Comment

जब मैं कविता लिखता हूँ

एकाग्र मन से अब शब्दों में उलझकर शब्दों से खेलता हूँ  शब्दों को पूज्यनीय चिंतनीय मान कर ये चादर बुनता हूँ  खुद को लेकर थोड़ा चिंतित के मै क्य...