Saturday, November 16, 2019

क्या तुम राह पर हो

याद करो वो प्रातः जब अपने जोश में तुमने बोला था
भैया दीदी अम्मी अब्बू गांव के हर नर नारी से
की तुम कुछ नाम कमा कर इक अपनी पहचान बनाओगे
क्या तुम राह पर हो या प्लूटो के जैसे बौने ग्रह बन जाओगे

तुम खूब उठे थे जब सुनी एक प्रेरणादाई गाथा
कुछ लक्ष्य तुम्हारे कुछ होंगे हमारे कहीं तुम्हें भी जाना था
जब तुमने खुद ही ठाना तो रास्ते दूजे क्यों बनवाएगा 
क्या तुम राह पर हो या तू भी समय का नाटक बताएगा

निरंतरता से तो इक डोरी चट्टानों को झेंप गई
देखो ना गांव की वो छोटी मुनिया चोटिल होकर तुंगो से खेल गई
सांसे लेना छोड़ नहीं सकते तो मेहनत क्यों छोड़ रहे समझाएगा
क्या तुम राह पर हो या तू भी कुछ बहाने अफसाने गुनगुनाएगा

चाहिए दुनिया की खुशी तुम्हें सारी की सारी ही
फिर मेहनत का कोसा क्यों खाली का खाली ही
अब जिद करते हो संचल जगत हिलाने की ऐसे क्या कर पाओगे
क्या तुम राह पर हो या घर के किसी कोने में जिंदगी बितावोगे

अभी क्यों थक गए अभी तुमने जीता ही क्या है
इसे थकावट कहते हो थकने में जो मजा वो मजा कहां है
उठो पथिक तुम भी अपना दाण्डीव उठावो निशाना लगाओ
तभी इस विशाल महाभारत के अर्जुन कहलाओगे
क्या तुम राह पर हो या किसी नई बीमारी का बोध करावोओगे !!

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