सुबह का वक्त था मौसम सर्द का सख्त था
टिनटिन बजने लगी मंदिर की वह घंटियां
आंखों में नींद थी और शरीर में थकन कहता किससे
तभी याद आई मां एक बार फिर से
आंख मेरी खुल चुकी थी पर दिमाग मेरा अब भी जप्त था
इक बेहद आकर्षित व्यंजन से सुगंधित थी रसोईया
अभी ख्यालात मेरे मुझसे कुछ मिले नहीं खुद से
तभी याद आई मां एक बार फिर से
सोच रहा कि जब मैं नींद में था
तो मां मेरी लड़ाई पे क्यों हर खेल जीत कर दी मुझे बधाइयां
हर महफिल जीत ली पर आपके आगे फिस्से
तभी याद आई मां एक बार फिर से
मेरा दिन जिसे शुरू करें वह रास्ता आपका था
मैं रात में बिस्तर पर पढू इसलिए लेती नहीं अंगड़ाइयां
पढ़ लिया जहां पूरा पर कुछ मसले सम्हले नहीं मुझसे
तभी याद आई मां एक बार फिर से !!
टिनटिन बजने लगी मंदिर की वह घंटियां
आंखों में नींद थी और शरीर में थकन कहता किससे
तभी याद आई मां एक बार फिर से
आंख मेरी खुल चुकी थी पर दिमाग मेरा अब भी जप्त था
इक बेहद आकर्षित व्यंजन से सुगंधित थी रसोईया
अभी ख्यालात मेरे मुझसे कुछ मिले नहीं खुद से
तभी याद आई मां एक बार फिर से
सोच रहा कि जब मैं नींद में था
तो मां मेरी लड़ाई पे क्यों हर खेल जीत कर दी मुझे बधाइयां
हर महफिल जीत ली पर आपके आगे फिस्से
तभी याद आई मां एक बार फिर से
मेरा दिन जिसे शुरू करें वह रास्ता आपका था
मैं रात में बिस्तर पर पढू इसलिए लेती नहीं अंगड़ाइयां
पढ़ लिया जहां पूरा पर कुछ मसले सम्हले नहीं मुझसे
तभी याद आई मां एक बार फिर से !!
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